अमीर खुसरो - Poems APP
Khusrow est considéré comme le « père du qawwali » et a introduit le style ghazal de la chanson en Inde, qui existent encore largement en Inde et au Pakistan. Khusrow était un expert dans de nombreux styles de poésie persane qui se sont développés dans la Perse médiévale, des qasidas de Khāqānī à la khamsa de Nizami.
एशिया की लाचन जाति के तुर्क सैफुद्दीन के अमीर खुसरो का जन्म सन् 1253ईस्वी में एटा उत्तर प्रदेश के कस्बे में हुआ था। जाति के तुर्क चंगेज खाँ के आक्रमणों से पीड़ित होकर बलबन के राज्यकाल में ‘’शरणार्थी के रूप में भारत में आ बसे थे। की माँ बलबनके युद्धमंत्री इमादुतुल मुल्क की पुत्री तथा एक भारतीय मुसलमान महिला थी। वर्ष की अवस्था में खुसरो के पिता का देहान्त हो गया। में उन्होंने कविता लिखना प्रारम्भ किया और २० वर्ष के होते होते वे कवि के रूप में प्रसिद्ध हो गए। में व्यवहारिक बुद्धि की कोई नहीं थी। जीवन की खुसरो की।.
ने अपना सारा जीवन राज्याश्रय में ही बिताया। में रहते हुए भी खुसरो हमेशा कवि, कलाकार, संगीतज्ञ और सैनिक ही बने रहे। साहित्य के अतिरिक्त संगीत के क्षेत्र में भी खुसरो का महत्वपूर्ण योगदान है je उन्होंने भारतीय और ईरानी रागों का सुन्दर मिश्रण किया और एक नवीन राग शैली इमान, जिल्फ़, साजगरी आदि को जन्म दिया je गायन में क़व्वालीऔर सितार को इन्हीं की देन माना जाता है .
वास्तविक नाम था - अबुल हसन यमीनुद्दीन मुहम्मद। खुसरो को बचपन से ही कविता करने का शौक़ था। काव्य प्रतिभा की चकाचौंध में, इनका बचपन का नाम अबुल हसन बिल्कुल ही विस्मृत हो कर रह गया। खुसरो दहलवी ने धार्मिक संकीर्णता और राजनीतिक छल कपट की उथल-पुथल से भरे माहौल में रहकर हिन्दू-मुस्लिम एवं राष्ट्रीय एकता, प्रेम, सौहादर्य, मानवतावाद और सांस्कृतिक समन्वय के लिए पूरी ईमानदारी और निष्ठा से काम किया। प्रसिद्ध इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने अपने ऐतिहासिक ग्रंथ 'तारीखे-फिरोज शाही' में स्पष्ट रुप से लिखा है कि बादशाह जलालुद्दीन फ़ीरोज़ खिलजी ने अमीर खुसरो की एक चुलबुली फ़ारसी कविता से प्रसन्न होकर उन्हें 'अमीर' का ख़िताब दिया था.