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Shiva MahaPuran: Audiobook

2.1

Hören Sie sich alle Kapitel von Shiva MahaPuran als Audio in Hindi an und lesen Sie Shiva Puran.

Name Shiva MahaPuran: Audiobook
Version 2.1
Aktualisieren 26. Nov. 2022
Größe 11 MB
Kategorie Bücher & Nachschlagewerke
Installationen 10Tsd.+
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Android OS Android 4.4+
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Shiva MahaPuran: Audiobook · Screenshots

Shiva MahaPuran: Audiobook · Beschreibung

Hören Sie sich alle Kapitel von Shiva MahaPuran als Audio in Hindi an und lesen Sie Shiva Puran.
'शिव पुराण' का सम्बन्ध शैव मत से है। इस पुराण में प्रमुख रूप से भक्ति-भक्ति शिव-महिमा का प्रसार-प्रसार किया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की की मूर्ति गया गया।। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु 'शिव पुराण' में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते रहन रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है।।

भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हितकारी। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त अत्यन्त माना माना गया। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं नहीं पड़ती। शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों यथा यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है है वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से 'जीवन' और 'मृत्यु' का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र –जीवन जीवन कला के द्योतम हैं हैं शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।

'' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' '' ' वे 'नीलकंठ' कहलाते हैं। क्योंकि समुद्र मंथन के समय जब देवगण एवं असुरगण अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों को हस्तगत के थे थे थे, तब कालकूट विष के बाहर निकलने से गए हट हट।। उसे ग्रहण करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। तब शिव ने ही उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर कर लिया। तभी से शिव नीलकंठ कहलाए। क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था था
ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही इस पुराण की रचना की गई है। यह पुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है। पुराणों के मान्य पांच विषयों शिव 'शिव में' में अभाव है। इस पुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित को मुक्ति 'मुक्ति' के शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया गया है।

मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म शिव को अर्पित कर देने देने चाहिए। वेदों और उपनिषदों में 'प्रणव - ॐ' के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है। प्रणव के अतिरिक्त 'गायत्री मन्त्र' के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है।। परन्तु इस पुराण में आठ संहिताओं सका उल्लेख प्राप्त है, जो मोक्ष कारक हैं। ये संहिताएं हैं- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु पूर्व (पूर्व भाग) और वायु उत्तर (उत्तर भाग)।

इस विभाजन के साथ ही शिव 'शिव पुराण' का माहात्म्य प्रकट किया गया है। इस प्रसंग में चंचुला नामक एक पतिता स्त्री की कथा है शिव शिव शिव सुनकर सुनकर स्वयं सद्गति को प्राप्त हो जाती है। यही नहीं, वह अपने कुमार्गगामी पति को को मोक्ष दिला देती देती। तदुपरान्त शिव पूजा की विधि बताई गई है। शिव कथा सुनने वालों को उपवास आदि न करने के लिए कहा गया गया है। क्योंकि भूखे पेट कथा में मन नहीं लगता। साथ ही गरिष्ठ भोजन, बासी भोजन, वायु विकार उत्पन्न करने दालें, बैंगन, मूली, प्याज, लहसुन, गाजर तथा-मदिरा का सेवन वर्जित बताया बताया गया है।

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