बा बजरंगन साम्राज्य - भय, बाधा और नकारात्मकता से मुक्ति!

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25 मई 2025
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दोहा :
निश्चय प्रेम विशेष ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान्॥



चौपाई : :
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर डोरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिन्धु महीपारा। सुरसा बंधन पतिबिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी कथा। मरेहु लात मारी सुरलोका॥
जय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखी परमपद लीन्हा॥
बाग उजारी सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जामकातर तोरा॥

अक्षय कुमार मारी सहारा। लूम लपेटि लंक को जरा॥
लाह समान लंक जरि गे। जय जय धुनसि सुरपुर नभ भाई॥
अब बिलंब केहि करण स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लक्षण प्राण के दाता। आतुर ह्वै दुःख करहु निपात॥

जय हनुमान् जयति बल-सागर। सूर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बजर की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनी कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

बदन कराल काल-कुल-ग़लक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिशाच, निशाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
अर्थात मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पिया कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम आचार्या। नहिं जानत कछु दास गर्ल॥

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नहीं॥
जनसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जय जय जय धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरण पकरी, कर जोरि मनावौं। इही औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाय॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

ॐ हं हं यंहाक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराणे खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबरौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मरै। ताहि कहौ फिरि कवन उबरै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की॥

यह बजरंग बाण जो जापान। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देवता जो जपाई हमेंसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥

दोहा :
उर विलक्षण दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥
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